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(सीआरपीसी) (Code of Criminal Procedure, या CRPC)

 (सीआरपीसी)" (Code of Criminal Procedure, या CRPC) पर लिखने के लिए कुछ बेसिक जानकारी देता हूँ। यह भारतीय दंड प्रक्रिया कोड (Indian Penal Code) के साथ जुड़ा हुआ है और भारतीय कानूनी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया को संचालित करने के लिए बनाया गया है। CRPC एक संहिता है जो भारत में दंडित अपराधों के मामलों में कानूनी प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए उपयोग होती है। इसे 1973 में पारित किया गया था और यह भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) के रूप में भी जानी जाती है। CRPC का मुख्य उद्देश्य अपराधियों को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से दण्डित करना है और इसे दंडित अपराधियों के खिलाफ जुर्माने और सजा को सुनिश्चित करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह मुद्दों को न्यायिक देखभाल में लाने, गिरफ्तारी, जमानत, जज के समक्ष याचिका, इंक़ार की याचिका, पट्टी प्रक्रिया, इंटरोगेशन, साक्ष्य देने, अपराधियो को दण्ड देने के लिए बनाया गया कानुन है! 

मानहानि की धारा 499 कब नहीं लगती?

  मानहानि की धारा 499 कब नहीं लगती?  1, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर सत्य आरोप लगाता है तो ऐसा करना मानहानि नहीं कहलाता। 2,लोक सेवकों के सार्वजनिक आचरण को बताना भी मानहानि नहीं कहलाता। 3,अदालत की कार्यवाही को लोगों तक पहुँचाने के लिए छापना या प्रकाशित करना।  मानहानि में नहीं माना जाता। 4,अपने या दूसरों के भले के लिए सही भावना से लगाया गया आरोप। मानहानि में नहीं माना जाता। 5,यदि कोई व्यक्ति बताई गई बातों अनुसार तथ्यों के आधार पर लोगों के हितों के लिए किसी व्यक्ति पर आरोप लगाता है, तो वह मानहानि में नहीं माना जाता। ऐसे व्यक्ति पर इस धारा के तहत कार्यवाही नहीं की जा सकती। https://amzn.to/3VwIXah 

सीआरपीसी की धारा 178 (CrPC Section 178)

  सीआरपीसी की धारा 178 (CrPC Section 178) दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1975) की धारा 178 के तहत किसी भी अपराध की जांच और सुनवाई के स्थान का प्रावधान किया गया है. CrPC की धारा 178 के मुताबिक, - (क) जहां यह अनिश्चित है कि कई स्थानीय क्षेत्रों में से किसमें अपराध किया गया है, अथवा (ख) जहां अपराध अंशतः एक स्थानीय क्षेत्र में और अंशतः किसी दूसरे में किया गया है, अथवा- (ग) जहां अपराध चालू रहने वाला है और उसका किया जाना एक से अधिक स्थानीय क्षेत्रों में चालू रहता है, अथवा (घ) जहां वह विभिन्न स्थानीय क्षेत्रों में किए गए कई कार्यों से मिलकर बनता है, वहां उसकी जांच या विचारण ऐसे स्थानीय क्षेत्रों में से किसी पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय द्वारा किया जा सकता है.  https://amzn.eu/d/bf4umYT 

CrPC Section 93: तलाशी वारंट, कब जारी किया जाए, यही बताती है धारा 93

  सी.आर.पी.सी की धारा 93 ( CrPC Section 93) बताती है कि तलाशी-वारंट कब जारी किया जा सकता है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 93 इस बारे में क्या कहती है? (1) (क) जहां किसी न्यायालय (Court) को यह विश्वास करने का कारण (Reason to believe) है कि वह व्यक्ति, जिसको धारा 91 के अधीन समन या आदेश या धारा 92 की उपधारा (1) के अधीन अपेक्षा सम्बोधित (Expected addressed) की गई या की जाती है, आदेश ऐसे समन या अपेक्षा द्वारा यथा अपेक्षित दस्तावेज (Required Documents) या चीज पेश नहीं करेगा या हो सकता है कि पेश न करे; अथवा (ख) जहां ऐसा दस्तावेज (Documents) या चीज के बारे में न्यायालय (Court) को यह ज्ञात नहीं है कि वह किसी व्यक्ति के कब्जे में है; अथवा (ग) जहां न्यायालय यह समझता है कि इस संहिता केअधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कायर्वाही के प्रयोजन की पूर्ति साधारण तलाशी या निरीक्षण से होगी, वहां वह तलाशी-वारंट जारी कर सकता है, और वह व्यक्ति ऐसा वारंट निर्दिष्ट है  उसके अनुसार और इसमे इसके पश्चात्त  अंतर्विष्ट् उपबंधो के अनुसार तालशी लेसकता है या निरीक्षण कर सकता है। 2. यदि न्यायालय ठीक समजता है तो, वह वा

भारतीय दण्ड संहिता की धारा-91, Cr.PC-91

  (1) जब कभी कोई न्यायालय या पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी यह समझता है कि किसी ऐसे अन्वेषण, जांच, विचारण, या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों के लिए, जो इस संहिता के अधीन ऐसे न्यायालय या अधिकारी के द्वारा या समक्ष हो रही हैं, किसी दस्तावेज या अन्य चीज का पेश किया जाना आवश्यक या वांछनीय है तो जिस व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में ऐसी दस्तावेज या चीज के होने का विश्वास है उसके नाम ऐसा न्यायालय एक समन या ऐसा अधिकारी एक लिखित आदेश उससे यह अपेक्षा करते हुए जारी कर सकता है कि उस समन या आदेश में उल्लिखित समय और स्थान पर उसे पेश करे अथवा हाजिर हो और उसे पेश करे।  (2) यदि कोई व्यक्ति, जिससे इस धारा के अधीन दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने की ही अपेक्षा की गई है उसे पेश करने के लिए स्वयं हाजिर होने के बजाय उस दस्तावेज या चीज को पेश करवा दे तो यह समझा जाएगा कि उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर दिया है। (3) इस धारा की कोई बात- (क) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और 124 या बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 (1891 का 13) पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी; अथवा (ख) डाक या तार प्राधिकारी की

Cr.PC.177, भारतीय दण्ड प्रक्रिया सहिता की धारा-177,

  दंड प्रक्रिया सहिता  में  “ जांच और विचारण का मामूली स्थान,  यानि कोर्ट का क्षेत्राधिकार  इसका प्रावधान सीआरपीसी  की   धारा  177  में    किया गया है,  यहाँ हम आपको ये बताने का प्रयास करेंगे कि  दंड प्रक्रिया सहिता   (CrPC) की धारा 177 के लिए किस तरह उपयोग मे लाई जाती है | दण्ड प्रक्रिया संहिता  यानि कि  CrPC की धारा 177 क्या  है, इसके सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से यहाँ समझने का प्रयास करेंगे   इस ब्लॉग में  दंड-प्रक्रिया-सहिता  की  धारा 177 में  जांच और विचारण का मामूली स्थान   इसके बारे में   क्या प्रावधान   बताये गए हैं, इनके बारे में पूर्ण रूप से इस धारा में चर्चा की गई है|  1. यह कि जब किसी स्थान विशेष पर कोई अपराधीक घटना घटित हुई हो तो वहा के थाने से संबंधित उसी न्यायालय में उस घटना का विचरण हो सकेगा,  2. यह कि जब कोई घटना किसी स्थान विशेष पर या जिस राज्य में हुई हो तो उसका विचारण हाई कोर्ट में भी हो सकता है क्योकि हाई कोर्ट को पुरे राज्य का क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है,  3. यह की पुरे देश में कही भी कोई अपराधीक घटना हुई हो तो उस घटना का संज्ञान या उस घटना की सुनवाई करने का

दो विवाह करने पर सजा कब नही हो सकती।

1. यह कि हिन्दु विवाह अधिनियम की धारा-5/4 मे बताई सपिंड नातेदारी मे पुरुष या स्त्री ने किसी के साथ सप्तपदी द्वारा वैध शादी कर रखी हो और इन दोनों में से किसी ने दोबारा किसी अन्य से सप्तपदी द्वारा वैध शादी करली हो तो ऐसी दशा में दूसरी वैध शादी करने वाले व्यक्ति को आई पी सी की धारा 494 के तहत बायगेमी का दोशी नही माना जा सकता क्योकि उस व्यक्ति की पहली शादी शुरू से शून्य और अवेध अबाध्य है।  2. यह कि हिन्दु विवाह अधिनियम की धारा 7/2 के तहत जहा सप्तपदी अनिवार्य हो वहा कोई व्यक्ति दो शादी करता है जिसमे एक शादी में सप्तपदी अधूरी रह गई हो। सातवा पद चलना बाकी रह गया हो। और उस व्यक्ति पर पहला या दूसरा व्यक्ति जो आहत है वो दो विवाह करने का आरोप लगाकर आई पी सी की धारा 494 मे बायगेमी का केस करेगा तो विपक्षी को इस धारा में कोई सजा नही हो सकती। क्योकि IPC की धारा 494 तभी एटरेक्ट् होगी जब एक व्यक्ति के दोनों विवाह की सप्तपदी पुरी तरह से संपन्न हुई हो। पर उपर बताए गए उदाहरण के तहत किसी पर कोई केस करता है तो आरोपी को IPC की धारा 494 मे कानून के तहत सजा नही हो सकती।  That in the Sapind relationship mention