संदेश

अक्तूबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दो विवाह करने पर सजा कब नही हो सकती।

1. यह कि हिन्दु विवाह अधिनियम की धारा-5/4 मे बताई सपिंड नातेदारी मे पुरुष या स्त्री ने किसी के साथ सप्तपदी द्वारा वैध शादी कर रखी हो और इन दोनों में से किसी ने दोबारा किसी अन्य से सप्तपदी द्वारा वैध शादी करली हो तो ऐसी दशा में दूसरी वैध शादी करने वाले व्यक्ति को आई पी सी की धारा 494 के तहत बायगेमी का दोशी नही माना जा सकता क्योकि उस व्यक्ति की पहली शादी शुरू से शून्य और अवेध अबाध्य है।  2. यह कि हिन्दु विवाह अधिनियम की धारा 7/2 के तहत जहा सप्तपदी अनिवार्य हो वहा कोई व्यक्ति दो शादी करता है जिसमे एक शादी में सप्तपदी अधूरी रह गई हो। सातवा पद चलना बाकी रह गया हो। और उस व्यक्ति पर पहला या दूसरा व्यक्ति जो आहत है वो दो विवाह करने का आरोप लगाकर आई पी सी की धारा 494 मे बायगेमी का केस करेगा तो विपक्षी को इस धारा में कोई सजा नही हो सकती। क्योकि IPC की धारा 494 तभी एटरेक्ट् होगी जब एक व्यक्ति के दोनों विवाह की सप्तपदी पुरी तरह से संपन्न हुई हो। पर उपर बताए गए उदाहरण के तहत किसी पर कोई केस करता है तो आरोपी को IPC की धारा 494 मे कानून के तहत सजा नही हो सकती।  That in the Sapind relationship mention

शुन्य विवाह हिंदु विवाह अधिनियम के तहत।

चित्र
 1, हिंदु विवाह अधिनियम की धारा-5 की उपधारा-1 इस धारा मे यह कहा गया है कि किसी व्यक्ति का सप्तपदी द्वारा पहले से एक विवाह संपन्न हो चुका है। और वह व्यक्ति दोबारा सप्तपदी द्वारा दूसरा विवाह करता है तो। दूसरा विवाह शुरू से शून्य होगा। और दूसरा विवाह करने के अपराध के लिए उस व्यक्ति पर आई पी सी की धारा-494 के तहत बायगेमी का मुकदमा पहला वैध पति या पहली पत्नी कर सकती हैं और इसके लिए दो विवाह करने वाले व्यक्ति को कोर्ट से सजा हो सकती हैं।  2, हिंदु विवाह अधिनियम की धारा-5 की उपधारा 5 मे कहा गया है कि शादी करने वाले पक्षकार सपिंड ना हो। यानि पिता की और से पांच पीढी और माता की और से तीन पीढी के अंदर कोई भी व्यक्ति सप्तपदी द्वारा वैध-शादी करते हैं तब भी ऐसी शादी शुरू से शून्य होगी।   3,  हिंदु विवाह अधिनियम की धारा 7 की उपधारा 2 मे कहा गया कि जहा शादी के लिए सप्तपदी अनिवार्य हो वहा शादी तभी वैध और बाध्य होगी जब सतवा पद चल लिया गया हो। यानी सात फेरे पुरे नही होने पर ऐसी शादी शुरू से शून्य होगी। दो हिंदूओ के बीच वैध-शादी के लिए सप्तपदी का संपन्न होना अति आवश्यक है, अनिवार्य है।  Sub-section-1 of S